गिरे क़तरों में पत्थर पर सदा ऐसा भी होता है भला हो कर भला नाम-ए-ख़ुदा ऐसा भी होता है दिलों में तल्ख़ियाँ फिर भी नज़र में मुस्कुराहट हो बला के हब्स में भी हो हवा ऐसा भी होता है मैं ख़ुद से अजनबी हो कर क़बा-ए-ख़ुश-दिली पहनूँ मिरे अंदर रहे कोई छुपा ऐसा भी होता है कनार-ए-आब-ए-दजला धूप तपती हो क़यामत की हर इक ज़र्रा बने कर्ब-ओ-बला ऐसा भी होता है कभी तन्हाइयों में ख़ुद-कलामी और फिर हँसना मुझे रास आए ये आब-ओ-हवा ऐसा भी होता है सभी पढ़ कर फिर अपनी राह हो लेते हैं बस्ती में सर-ए-दीवार कुछ मुबहम लिखा ऐसा भी होता है बचा लूँ नूह के बेड़े को तूफ़ानों की शिद्दत से बढ़ा बहर-ए-मदद ख़ुद किब्रिया ऐसा भी होता है