गिरी है बर्क़ चमन में कहाँ नहीं मालूम चमन फुंका कि जला आशियाँ नहीं मालूम किसी को दिल तिरा दर्द-ए-निहाँ नहीं मालूम कहाँ मिलेगी तुझे अब अमाँ नहीं मालूम बदल रहा है ये नज़्म-ए-हयात ही अपना कि हो रही है मोहब्बत जवाँ नहीं मालूम ये जानता हूँ फ़क़त जल रहा है दिल मेरा निकल रहा है कहाँ से धुआँ नहीं मालूम भटक रहा हूँ हर इक रहगुज़र से वारफ़्ता किधर है गर्द कहाँ कारवाँ नहीं मालूम दिल-ए-ख़राब को अब फ़ुर्सत-ए-तलाश कहाँ ख़लिश ज़रूर है लेकिन कहाँ नहीं मालूम गुज़र रहा हूँ जुनूँ की जिलौ में ऐ 'मुश्किल' ये ज़ौक़ ले के चला है कहाँ नहीं मा'लूम