गिर्या करता है कभी चुप कभी हँसता है वही मेरी वहशत मिरी हैरत को समझता है वही कभी ख़ुशबू कभी बादल कभी मौज-ए-दरिया मेरे अशआ'र में सौ रंग बदलता है वही कोई गुज़रा था दबे पाँव जहाँ से इक दिन रास्ता ख़्वाब की दहलीज़ से मिलता है वही दिन के हंगामों में सूरज से रिफ़ाक़त उस की रात फिर चाँद सितारों से उलझता है वही ख़ुद-शनासी जिसे तफ़्वीज़ हुई है 'असलम' ठोकरें खाता है गिरता है सँभलता है वही