गिर्या न हो सकेगा तिरे रहगुज़ार में अब जान ही नहीं है तिरे सोगवार में हामी ज़मीन का है नज़र आसमाँ पे है कुछ तो ग़ुरूर सा है तिरे इंकिसार में मत पूछ हाए उम्र वो कितनी दराज़ थी हम ने गुज़ार दी जो तिरे इंतिज़ार में सारे जहाँ ने उस को बताया था बेवफ़ा फिर भी कमी न आई मिरे ए'तिबार में तू था के जा मिला था रक़ीबों से और हम तुझ को तलाशते रहे हर ग़म-गुसार में हमवार कोई संग तराज़ू न कर सका लाया गया जो दर्द हमारा शुमार में रो लूँ अभी कि मोहलत-ए-ग़म दे रहा है दिल कल ये भी फिर रहे न मिरे इख़्तियार में दो-गाम चल के साथ मिरे तू ब-क़द्र-ए-शौक़ पैदा न कर उमीद दिल-ए-बे-क़रार में कब से उठा रहा है ज़ियाँ पर ज़ियाँ ग़रीब दिल को लगा दिया है ये किस कारोबार में इमदाद को न आए वो उन की ख़ता नहीं आवाज़ ही नहीं थी हमारी पुकार में