गो जाम मिरा ज़हर से लबरेज़ बहुत है क्या जानिए क्यूँ पीने से परहेज़ बहुत है शो-केस में रक्खा हुआ औरत का जो बुत है गूँगा ही सही फिर भी दिल-आवेज़ बहुत है अशआर के फूलों से लदी शाख़-ए-तमन्ना मिट्टी मिरे एहसास की ज़रख़ेज़ बहुत है खुल जाता है तन्हाई में मल्बूस की मानिंद वो रश्क-ए-गुल-ए-तर कि कम-आमेज़ बहुत है मौसम का तक़ाज़ा है कि लज़्ज़त का बदन चूम ख़्वाहिश के दरख़्तों में हवा तेज़ बहुत है आँखों में लिए फिरता है ख़्वाबों के जज़ीरे वो शाइर-ए-आशुफ़्ता जो शब-ख़ेज़ बहुत है