गोशा-ए-दिल में कोई फूल खिलाए रक्खो एक उम्मीद पे आँगन को सजाए रक्खो ख़ुश्क पत्तों की तरह अस्ल से कट जाओगे है यही अच्छा उसे अपना बनाए रक्खो मेरा ईमाँ है उसे लौट के घर आना है ताक़ में कोई दिया रोज़ जलाए रक्खो याद उस की तो किसी ताक़ में रखने की नहीं ये सहीफ़ा है उसे दिल से लगाए रक्खो खुल ही जाएगा कोई बाब-ए-इजाबत 'सज्जाद' अपने हाथों को ब-हर-तौर उठाए रक्खो