गुज़र जहाँ के ख़ंजर-ए-दो-दम से खेलता हुआ ख़ुशी से खेलता हुआ अलम से खेलता हुआ हवा-ए-दैर-ओ-का'बा-ओ-हरम से दौर-दौरा हवा-ए-दैर-ओ-का'बा-ओ-हरम से खेलता हुआ किसी के गेसुओं के पेच-ओ-ख़म का हो के रह गया किसी के गेसुओं के पेच-ओ-ख़म से खेलता हुआ निगाह-ए-मस्त में जहान-भर की मस्तियाँ लिए वो कौन आ रहा है जाम-ए-जम से खेलता हुआ तमाम-उम्र खेलते रहे क़ज़ा की गोद में हमीं ये क्या मज़ाक़ कर गया तू हम से खेलता हुआ बुलंदियों को पस्तियों को रौंदता चला गया हँसी-ख़ुशी तुम्हारे हर क़दम से खेलता हुआ अभी तो रेंगता हुआ अदम को जा रहा हूँ मैं फिर उल्टे पाँव आऊँगा अदम से खेलता हुआ