गुज़रा उदासियों में ही जीवन तमाम है लब पर हमारे फिर भी तुम्हारा ही नाम है तेरे बग़ैर हम से है मौसम ख़फ़ा ख़फ़ा ख़ामोशियों को ओढ़े हुए बैठी शाम है मजबूरियों की जेल में है क़ैद वो कहीं वर्ना तो मेरे प्यार को करता सलाम है तेरे सिवाए दिल में किसी का गुज़र नहीं यादों ने तेरी ऐसा किया इंतिज़ाम है अश्कों की रौशनाई से मैं ने है जो लिखा छाया हर एक दिल पे 'शिखर' वो कलाम है