गुज़रे वक़्तों की वो तहरीर सँभाले हुए हैं दिल को बहलाने की तदबीर सँभाले हुए हैं बाँध रक्खा है हमें जिस ने अभी तक जानाँ हम मोहब्बत की वो ज़ंजीर सँभाले हुए हैं देखते रहते हैं अज्दाद के चेहरे जिस में हम वफ़ाओं की वो तस्वीर सँभाले हुए हैं जिन लकीरों में नुजूमी ने कहा था तू है दोनों हाथों में वो तक़दीर सँभाले हुए हैं वस्ल की शब में जो देखे थे सुनहरी सपने उन की हम आज भी तदबीर सँभाले हुए हैं