गुज़रते लम्हों के दिल में क्या है हमें पता है हवा के आँचल पे क्या लिखा है हमें पता है सुलग रही है कहाँ पे चिंगारी नफ़रतों की धुआँ कहाँ से ये उठ रहा है हमें पता है सफ़ीना किस तरह पार उतारें ये हम से पूछो समुंदरों का मिज़ाज क्या है हमें पता है कहाँ कहाँ हादसे छिपे हैं ख़बर है हम को कहाँ से मंज़िल का रास्ता है हमें पता है जो उम्र भर ज़ुल्म से लड़ा सिंदबाद बन कर उसे ज़माने ने क्या दिया है हमें पता है जो दे रहा है दुहाई मासूमियत की अपनी वही तो साज़िश का सर्ग़ना है हमें पता है ख़िज़ाँ ने गुलशन से जाते जाते 'ख़ुमार'-साहब सबा के कानों में क्या कहा है हमें पता है