गुल हुआ ये किस की हस्ती का चराग़ मुद्दई के घर जला घी का चराग़ ख़ैर से रहता है रौशन नाम-ए-नेक हश्र तक जलता है नेकी का चराग़ वो हक़ीक़त है दिल-ए-अफ़सुर्दा की टिमटिमाए जैसे सर्दी का चराग़ हम से रौशन है तुम्हारी बज़्म यूँ नागवारा जैसे गर्मी का चराग़ हो क़नाअ'त तुझ को तो बस है 'ज़हीर' ख़ाना-आराई को दमड़ी का चराग़