गुल ज़ख़्म को आँसू को गुहर हम ने कहा है हर ऐब-ए-मोहब्बत को हुनर हम ने कहा है रानाई-ए-जल्वा को ब-सद हुस्न-ए-तयक़्क़ुन ख़ुद अपना ही इक अक्स-ए-नज़र हम ने कहा है कुछ बात तो है जिस के सबब सारे जहाँ में ऐ दोस्त तुझे ख़ुल्द-नज़र हम ने कहा है कहने को रह-ए-शौक़ में राही तो बहुत थे मंज़िल को मगर गर्द-ए-सफ़र हम ने कहा है हो जिन से ग़म-ए-तीरगी-ए-शब का मुदावा ऐसे ही उजालों को सहर हम ने कहा है हक़-गोई का अंजाम समझ कर भी ऐ 'मंशा' जो कहना था बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर हम ने कहा है