गुलाबी होंठ ये क़श्क़ा तुम्हारा मुझे भाने लगा चेहरा तुम्हारा लबों को पड़ गई आदत लबों की बहुत महँगा पड़ा बोसा तुम्हारा मक़ान-ए-जिस्म यूँ तो ढह गया पर क़यामत ढा रहा मलबा तुम्हारा मैं जब भी सोचता हूँ ख़ुद-कुशी की बचाता है मुझे चेहरा तुम्हारा हमें बिछड़े हुए अर्सा हुआ पर अभी तक दिल में है नश्शा तुम्हारा