गुल-एज़ार और भी यूँ रखते हैं रंग और नमक पर मिरे यार के चेहरे का सा ढंग और नमक हुस्न उस शोख़ का है बस कि मलीह उस की निगाह दिल पे करते हैं मिरे कार-ए-ख़दंग और नमक ग़ुंचा-ए-गुल में व बुलबुल में हुई बे-मज़गी देख गुलशन में दहन यार का तंग और नमक दर्द-ए-हिज्राँ से ब-तंग आपी हूँ नासेह से कहो ज़ख़्म पर मेरे न छिड़के ये दबंग और नमक सुख़न-ए-वा'ज़-ओ-नसीहत दिल-ए-पुर-ख़ूँ को 'हुज़ूर' यूँ है ज्यूँ शीशा-ए-मय के लिए संग और नमक