गुलों की चाह में तौहीन-ए-बर्ग-ओ-बार न कर भरे चमन में ये सामान-ए-इंतिशार न कर ख़िज़ाँ रियाज़-ए-चमन है ख़िज़ाँ गुदाज़-ए-चमन ख़िज़ाँ का डर हो तो फिर ख़्वाहिश-ए-बहार न कर बस एक दिल है यहाँ वाक़िफ़-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ वफ़ा की राह में रहबर का इंतिज़ार न कर हुजूम-ए-ग़म में तबस्सुम का खेल देख लिया मैं कह रहा था मिरे ग़म का ए'तिबार न कर कहा ये इश्क़ से दार-ओ-सलीब-ए-ज़िंदाँ ने मजाल हो तो मिरी राह इख़्तियार न कर ये ताज़ा ताज़ा क़फ़स क्या ख़िज़ाँ से कुछ कम हैं हुजूम-ए-गुल ही से अंदाज़ा-ए-बहार न कर नसीम-ए-सुब्ह उन्हें मुस्कुरा तो लेने दे अभी गुलों से कोई ज़िक्र-ए-नागवार न कर उधर हर एक नज़र में है हसरतों का जुलूस इधर ये हुक्म-ए-हया है निगाहें चार न कर ये पूछना है किसी दिन जनाब-ए-'ज़ैदी' से कि आप ने तो कहा था किसी से प्यार न कर