गुलों की सम्त भंवरो से ज़ियादा कौन देखेगा रुख़-ए-गुलनार पर उल्फ़त का ग़ाज़ा कौन देखेगा नज़र के सामने जो है उसे सब देख लेते हैं किसी के दिल के हुजरे का तमाशा कौन देखेगा तुम्हारे बिन उदासी दिन पे अक्सर छाई रहती है शब-ए-फ़ुर्क़त फ़लक पर चाँद तारा कौन देखेगा मोहब्बत का तक़ाज़ा बस मोहब्बत ही मोहब्बत है मोहब्बत में ज़माने का तक़ाज़ा कौन देखेगा अगर पेश-ए-नज़र तेरी नज़र तेरा सरापा हो किसे कहते हैं क़ारूनी ख़ज़ाना कौन देखेगा पढ़ूँ तुम को मोहब्बत गोशे गोशे में नज़र आए लिफ़ाफ़ा खोल कर ये ख़त-ए-सादा कौन देखेगा जिसे देखो वही कहता है तुम 'मक़्सूद' हो मेरे किसी से कर लिया है मैं ने वा'दा कौन देखे देखेगा