गुलों को रंग सितारों को रौशनी के लिए ख़ुदा ने हुस्न दिया तुम को दिलबरी के लिए तुम्हारे रू-ए-मुनव्वर की ज़ौ में डूब गया फ़लक पे चाँद जो निकला था हमसरी के लिए सनम हज़ारों नए पत्थरों के अंदर ही तड़प रहे हैं अभी फ़न्न-ए-आज़री के लिए अरे ओ बर्क़-ए-तपाँ फूँक दे नशेमन को तरस रहा हूँ गुलिस्ताँ में रौशनी के लिए रह-ए-वफ़ा में मिरा कौन है जो हर सू से ग़ुबार-ए-राह उठी है पयम्बरी के लिए निकल पड़ा है जुनूँ थाम कर के दस्त-ए-वफ़ा इक अजनबी का सहारा है अजनबी के लिए जहाँ पे इश्क़ को सौदा-ए-ग़र्ज़ हो ऐ 'वहीद' वही मक़ाम है उल्फ़त में ख़ुद-कुशी के लिए