गुलों में रंग कहाँ है तिरे बदन की तरह तिरा बदन है सितारों की अंजुमन की तरह वही जो लोग थे आवारा बे-वतन की तरह उन्हीं के दम से बयाबाँ हुआ चमन की तरह ये है फ़रेब-ए-नज़र या बहार का मौसम सजा हुआ है गुलिस्ताँ मिरा दुल्हन की तरह जुनून-ए-शौक़ मिरा कामयाब हो ही गया लगे है मुझ को बयाबाँ भी अब चमन की तरह वो ज़िंदगी तो नहीं ज़िंदगी का मातम है जो ज़िंदगी हो वतन ही में बे-वतन की तरह शब-ए-फ़िराक़ है ग़म है ख़लिश है आँसू है मिरी हयात है तन्हा भी अंजुमन की तरह जहाँ भी मैं ने क़दम अपना रख दिया 'मुख़्तार' महक उठे वहीं काँटे भी नस्तरन की तरह