गुलशन-ए-बे-बहार हैं हम लोग दामन-ए-ख़ारज़ार हैं हम लोग चश्म-ए-कोताह-बीं को क्या है ख़बर ख़ुद ही अपने शिकार हैं हम लोग आइना भी यक़ीं न कर पाए ऐसे बे-ए'तिबार हैं हम लोग किस क़दर पुर-सुकून है दुनिया किस क़दर बे-क़रार हैं हम लोग वक़्त के ना-तमाम सहरा में ज़िंदगी का मज़ार हैं हम लोग आप अपनी तलाश में गुम हैं आप ख़ुद से फ़रार हैं हम लोग ऐ शब-ए-इंतिज़ार की ख़ल्वत क्या तिरे राज़दार हैं हम लोग अह्द-शिकनी तिरे ज़माने में अह्द-ना-पाएदार हैं हम लोग अपने अंदर से हैं फ़क़त अन्क़ा बाक़ी सब में शुमार हैं हम लोग 'शम्स' ख़ुद को ही बस नहीं मिलते एक ढूँडो हज़ार हैं हम लोग