गुलशन-ए-दिल में मिले अक़्ल के सहरा में मिले जो भी मिलना है मिले और इसी दुनिया में मिले बरहमी अंजुमन-ए-शौक़ की क्या पूछते हो दोस्त बिछड़े हुए अक्सर सफ़-ए-आ'दा में मिले आने वालों ने मिरे बा'द गवाही दी है कई गुलज़ार मिरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा में मिले यूँ भी गुज़री है कि छाए रहे बेदारी पर नींद आई तो वो ग़म ख़्वाब की दुनिया में मिले नहीं मालूम कि क्या देखने आए थे उधर बे-अजर लोग बहुत शहर-ए-तमाशा में मिले फिर उमीदों ने यहीं गाड़ दिए हैं ख़ेमे रंग कुछ उड़ते हुए दामन-ए-सहरा में मिले फ़ासलों से न मिरे शौक़ की मंज़िल नापो शश-जिहत सैद मिरे दाम-ए-तमन्ना में मिले