गुलू-ए-यज़दाँ में नोक-ए-सिनाँ भी टूटी है कशाकश-ए-दिल-ए-पैग़मबराँ भी टूटी है सराब है कि हक़ीक़त नज़ारा कि फ़रेब यक़ीं भी टूटा है तर्ज़-ए-गुमाँ भी टूटी है सियासत-ए-दिल-आईना चूर चूर तो थी सियासत-ए-दिल-ए-आहन-गराँ भी टूटी है अँधेरी रात का ये नीम-बाज़ सन्नाटा गुलों की साँस रग-ए-गुल्सिताँ भी टूटी है तुम्हारे जिस्म का सूरज जहाँ जहाँ टूटा वहीं वहीं मिरी ज़ंजीर-ए-जाँ भी टूटी है कहाँ हैं आलम-ए-इम्काँ वजूद में आएँ नज़र नज़र ही रही है जहाँ भी टूटी है शिकस्त-ओ-रेख़्त ज़माने की ख़ूब है 'मख़दूम' ख़ुदी तो टूटी थी ख़ू-ए-बुताँ भी टूटी है