गुमान ख़ाक में सब के मिलाने वाला है कोई चराग़ हवाएँ बुझाने वाला है उफ़ुक़ उफ़ुक़ पे महकती हुई शफ़क़ से खुला कोई सितारा कहीं जगमगाने वाला है न जाने कौन पस-ए-चश्म है जुनूँ-पेशा जो आँसुओं के ख़ज़ाने लुटाने वाला है ये कौन आग लगाने पे है यहाँ मामूर ये कौन शहर को मक़्तल बनाने वाला है