गुमान तोड़ चुका मैं मगर नहीं कोई है सरा-ए-फ़िक्र में बैठा हुआ कहीं कोई है मिरे ख़याल को देता है नौ-ब-नौ चेहरे है आस पास कोई लम्स-ए-मरमरीं कोई है मिरा यक़ीन कि दुनिया में हूँ अकेला मैं सदा-ए-दिल मुझे कहती है ग़म-नशीं कोई है तिरी तबाही में शामिल नहीं है ग़ैर कोई उसे तलाश तो कर मार-ए-आस्तीं कोई है निगाह से नहीं जाता कोई ख़याल-नुमा हवास-ओ-होश-ओ-ख़िरद के बहुत क़रीं कोई है मिरा तुम्हारा तअल्लुक़ बिगड़ के बन गया है मिरे तुम्हारे ख़यालात का अमीं कोई है वरा-ए-ज़ेहन-ओ-ज़माँ किस ने काएनात बुनी तू कैसे कहता है कोई नहीं नहीं कोई है