गुनाहगार तो रहमत को मुँह दिखा न सका जो बे-गुनाह था वो भी नज़र मिला न सका तरब है शेवा-ए-रिंदान-ए-आक़िबत-ना-शनास जो गुल न था वो गुलिस्ताँ में मुस्कुरा न सका बहुत ख़फ़ीफ़ थी कौन-ओ-मकाँ की जल्वागरी मिरी निगाह का गोशा भी जगमगा न सका हवाला-ए-निगह-ए-शर्मगीं हुईं आख़िर वो बिजलियाँ जो कहीं आसमाँ गिरा न सका बदीआ-कार है ज़ेहन-ए-ख़िरद-पसंद मगर तसव्वुरात से तस्वीर-ए-ग़म बना न सका अजब नहीं कि गुलिस्ताँ में पा-ब-गिल रह जाए वो बद-नसीब जो रम्ज़-ए-ख़िराम पा न सका जिया वो पाक जो रखता था ख़ार-ए-पैराहन जो गुल ब-जैब था दामन कभी बचा न सका 'नुशूर' नाज़ुकी-ए-तब्-ए-शेर क्या कहिए जहाँ में रह के ज़माने के नाज़ उठा न सका