गुनगुनाती हुई आवाज़ कहाँ से लाऊँ तेरी आवाज़ का अंदाज़ कहाँ से लाऊँ तेरे अल्ताफ़ से रक़्साँ हैं लबों पर ख़ुशियाँ ग़म में डूबी हुई आवाज़ कहाँ से लाऊँ हाल-ए-दिल फूल से चेहरों को सुनाने के लिए मैं लब-ए-ज़मज़मा-पर्वाज़ कहाँ से लाऊँ मुझ से हंस हंस के तिरी मश्क़-ए-सितम होती है तुझ सा मोनिस बुत-ए-तन्नाज़ कहाँ से लाऊँ शोमी-ए-बख़्त है ये 'चर्ख़' कि वो कहते हैं मैं मसीहाई का अंदाज़ कहाँ से लाऊँ