गूँजता है नाला-ए-महताब आधी रात को टूट जाते हैं सुहाने ख़्वाब आधी रात को भागते सायों की चीख़ें टूटते तारों का शोर मैं हूँ और इक महशर-ए-बे-ख़्वाब आधी रात को शाम ही से बज़्म-ए-अंजुम नश्शा-ए-ग़फ़लत में थी चाँद ने भी पी लिया ज़हराब आधी रात को इक शिकस्ता ख़्वाब की कड़ियाँ मिलाने आए हैं देर से बिछड़े हुए अहबाब आधी रात को दौलत-ए-एहसास-ए-ग़म की इतनी अर्ज़ानी हुई नींद सी शय हो गई नायाब आधी रात को