हाँ हाँ ग़लत है ये फ़क़त जो जल्वा-गर आँखों में है इस दिल में तेरी राह है तेरा गुज़र आँखों में है जल्वे की तेरी आरज़ू हसरत तिरे दीदार की अब रात दिन हर इक घड़ी आठों पहर आँखों में है इस तरह छुप कर क्यों मिलें इस तरह छुप कर क्यों रहें अब वो हमारे सामने आएँ अगर आँखों में है रोज़-ए-अज़ल सूरत तिरी देखे हुए मुद्दत हुई अब तक वही जल्वा तिरा शाम-ओ-सहर आँखों में है मुद्दत से मैं यूँ ही भटकता फिर रहा हूँ दर-ब-दर किस की तलाश आँखों को है कैसा सफ़र आँखों में है मुझ को ज़रूरत ही नहीं पड़ती किसी तस्वीर की जब तक मिरा महबूब मेरा हम-सफ़र आँखों में है राह-ए-मोहब्बत में कोई रहबर नहीं अपना मियाँ बस देखना ये है मुझे कितना हुनर आँखों में है सुन 'मुनफ़रिद' क्यों ज़ार फिरता है तू नाहक़ कू-ब-कू जिस की है तुझ को जुस्तुजू वो बे-ख़बर आँखों में है