शे'र होता है अब महीनों में ज़िंदगी ढल गई मशीनों में प्यार की रौशनी नहीं मिलती उन मकानों में उन मकीनों में देख कर दोस्ती का हाथ बढ़ाओ साँप होते हैं आस्तीनों में क़हर की आँख से न देख इन को दिल धड़कते हैं आबगीनों में आसमानों की ख़ैर हो यारब इक नया अज़्म है ज़मीनों में वो मोहब्बत नहीं रही 'जालिब' हम-सफ़ीरों में हम-नशीनों में