हद्द-ए-सितम न कर कि ज़माना ख़राब है ज़ालिम ख़ुदा से डर कि ज़माना ख़राब है इतना न बन-सँवर कि ज़माना ख़राब है मैली नज़र से डर कि ज़माना ख़राब है बहना पड़ेगा वक़्त के धारे के साथ साथ बन उस का हम-सफ़र कि ज़माना ख़राब है फिसलन क़दम क़दम पे है बाज़ार-ए-शौक़ में चल देख-भाल कर कि ज़माना ख़राब है कुछ उन पे ग़ौर कर जो तक़ाज़े हैं वक़्त के उन से निबाह कर कि ज़माना ख़राब है आ ग़र्क़-ए-जाम कर दें मिले हैं जो रंज-ओ-ग़म पैमाना मेरा भर कि ज़माना ख़राब है गर बे-ठिकाना हैं तो नहीं शर्मसार हम अब क्या बनाएँ घर कि ज़माना ख़राब है मेहनत शुऊर तजरबा तालीम-ओ-तर्बियत सब कुछ है बे-असर कि ज़माना ख़राब है दो रोटियाँ नहीं न सही एक ही सही इस पर ही सब्र कर कि ज़माना ख़राब है