हदीस-ए-इश्क़ को उन्वान ला-जवाब मिला मुझे निगाह मिली है उसे शबाब मिला हमें नसीब से क़ुरआन ला-जवाब मिला वरक़ जहाँ से खुला ज़िंदगी का बाब मिला ख़ुदा के फ़ज़्ल से जूया-ए-इल्म-ओ-दानिश को नबी सा शहर मिला और अली सा बाब मिला गुनाहगार हमीं थे तमाम ख़िल्क़त में हमें को अशरफ़-ए-मख़्लूक़ का ख़िताब मिला बस एक ख़्वाब की ता'बीर ढूँढते गुज़री तमाम-उम्र का हासिल बस एक ख़्वाब मिला झुकी झुकी सी निगाहों में इज़्तिराब निहाँ न जाने कितने हिजाबों में बे-हिजाब मिला जमाल-ए-यार की रानाइयों में आख़िर-ए-शब कहीं ये काहकशाँ थी कहीं शहाब मिला ज़मीन-ए-शेर हुई आफ़्ताब-ए-बुर्ज-ए-शरफ़ 'अनीस' फ़न में तिरे लुत्फ़-ए-बू-तराब मिला सुख़न समझते हैं 'जाफ़र'-रज़ा कई अहबाब जो राह-ए-शौक़ में नग़्मात का सराब मिला