हादसे फैल गए साया-ए-मिज़्गाँ की तरह

हादसे फैल गए साया-ए-मिज़्गाँ की तरह
ग़म-ए-दौराँ भी मिला है ग़म-ए-जानाँ की तरह

लाख पैवंद उमीदों ने लगा रक्खे हैं
दिल की सूरत नज़र आती है गरेबाँ की तरह

कोई अफ़्लाक-नशीं है तो पुकारे मुझ को
हसरतें ख़ाक-बसर हैं मिरी तूफ़ाँ की तरह

और होंगे वो मयस्सर है जिन्हें लुत्फ़-ए-बहार
हम तो गुलशन में भी रहते हैं बयाबाँ की तरह

जो भी गुल है यहाँ फ़िरदौस बना बैठा है
कौन खिलता है यहाँ गुंचा-ए-इस्याँ की तरह

ये भी ए'जाज़ कहीं बाद-ए-मुख़ालिफ़ का न हो
दिल उड़ा जाता है औरंग-ए-सुलैमाँ की तरह

ख़ौफ़-ए-महशर से न घबराओ तुम ऐ बादा-कशो
दर-ए-तौबा भी खुला है दर-ए-ज़िंदाँ की तरह

हम किया करते हैं अश्कों से तवाज़ो' क्या क्या
जब ख़यालों में वो आ जाते हैं मेहमाँ की तरह

न कोई साज़ न संगीत न पाज़ेब न गीत
उफ़ ये माहौल कि है शहर-ए-ख़मोशाँ की तरह

हम तिरे मिस्र में आए हैं ज़ुलेख़ा-ए-शिकम
बिक न जाएँ कहीं हम यूसुफ़-ए-कनआँ' की तरह


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