हादसे उम्र-भर आज़माते रहे चोट खा खा के हम मुस्कुराते रहे यूँ गुज़रता रहा ज़िंदगी का सफ़र बिन तुम्हारे क़दम डगमगाते रहे आंधियों से अदावत रही उम्र-भर हम हवाओं में दीपक जलाते रहे हज्ज-ओ-तीरथ को जाने से क्या फ़ाएदा गर बुज़ुर्गों का दिल हम दुखाते रहे बाँट देगी सियासत हमें दो तरफ़ हम जो मंदिर और मस्जिद बनाते रहे 'देव' पीने का जिस को सलीक़ा न था मय-कदे उन की क़िस्मत में आते रहे