है ऐसा वक़्त कि ख़ुद पर करम किया जाए ज़रूरतों को ज़रा अपनी कम किया जाए हो अपनी आँखों में हर-दम वो एक ही चेहरा सो अपनी आँखों पे ऐसा ही दम किया जाए क़ुबूलियत का सबब एक ये भी हो शायद दुआ के वक़्त में आँखों को नम किया जाए वो साथ छोड़ गया तो मलाल क्या इस का बिछड़ गया जो कहीं उस का ग़म किया जाए किया है हम ने ज़माने का एहतिराम बहुत कुछ अपनी ज़ात को अब मोहतरम किया जाए ये दास्तान-ए-मोहब्बत तो ख़ूब है 'फ़ारूक़' कोई फ़साना लहू से रक़म किया जाए