है बद बला किसी को ग़म-ए-जावेदाँ न हो या हम न हों जहाँ में ख़ुदा या जहाँ न हो आईन-ए-अहल-ए-इश्क़ कहाँ और हम कहाँ ऐ आह शोला-बार न हो ख़ूँ-चकाँ न हो फ़ेल-ए-हकीम ऐन सलाह ओ सवाब है साक़ी अगर शराब न दे सरगिराँ न हो तदबीर तर्क-ए-दुश्मन-ए-जाँ की है रात दिन किस तरह फिर मुझे गिला-ए-दोस्ताँ न हो क्या वो मत'अ जिस की न हो कोई घात में डरता हूँ मैं जो दुज़द पस-ए-कारवाँ न हो जब तक फ़रोग़-ए-मय से न हो सीना नूर-ज़ार हरगिज़ हरीफ़-ए-मय-कदा असरार-दाँ न हो लाज़िम है यार भी तो हो बेताब वर्ना क्या वो इश्क़ है कि रंज यहाँ हो वहाँ न हो नाहक़ वो जी जलाते हैं सौदा-ए-इश्क़ पर जिन को ये सोच है कि कुछ इस में ज़ियाँ न हो हम बू-ए-दोस्त तुझ को सुँघाएँगे 'शेफ़्ता' महव-ए-शमीम तुर्रा-ए-अंबर-फ़िशाँ न हो