है दाग़ दाग़ मिरा दिल मगर मलूल नहीं तमाम उम्र का रोना मुझे क़ुबूल नहीं वो गुफ़्तुगू जो निगाहों से होती रहती है हदीस-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना है फ़ुज़ूल नहीं बहुत से फूल हैं दामन में आप के लेकिन जिसे हम अपना कहें ऐसा कोई फूल नहीं वो एक बुत जिसे कहते हैं शाहकार-ए-जमील सनम-कदे का ख़ुदा है मगर रसूल नहीं सुराग़-ए-जादा-ए-मंज़िल जो दे गया है 'फ़रीद' हिना का रंग है वो रास्ते की धूल नहीं