है फ़ना बिस्मिल्लाह-ए-दीवान-ए-इश्क़ आफ़रींहा बर-सबक़ ख़्वानान-ए-इश्क़ ज़ोहरा-ए-दोज़ख़ है आगे उस के आब अल-अमान अज़ आतिश-ए-सोज़ान-ए-इश्क़ है रिहा क़ैद-ए-ग़म-ए-कौनैन से पा-ए-ता-सर क़ैदी-ए-ज़िंदान-ए-इश्क़ तंग रखता है दवा के नाम से मुब्तला-ए-दर्द बे-दरमान-ए-इश्क़ ख़ून-ए-दिल पीता है और है जानता नेमत-ए-उज़मा उसे मेहमान-ए-इश्क़ ग़ौर कर देखा तो हफ़्त अक़्लीम में हुक्मराँ है बे-गुमाँ सुल्तान-ए-इश्क़ कश्ती-ए-गर्दूं सरापा डूब जाए जोश में आवे अगर तूफ़ान-ए-इश्क़ बंदे को मौला बनाता है मुदाम किस क़दर है ये अयाँ एहसान-ए-इश्क़ भूल जावे ज़ोहद-ओ-तक़्वा ज़ाहिदा गर करे तू सैर-ए-कुफ़्रिस्तान-ए-इश्क़ फ़ैज़ से 'आसिम' शह-ए-ख़ादिम के है सैर में अपनी बहारिस्तान-ए-इश्क़