है इब्तिदा-ए-ग़म-ए-इश्क़ रोए जाते हैं लिबास रंगने से पहले भिगोए जाते हैं सता रहा है मिरे ख़ून-ए-नारवा का ख़याल वो नींद में हैं मगर हाथ धोए जाते हैं रहे हमेशा ये फ़नकार बे-नियाज़-ए-सितम क़लम की नोक लहू में डुबोए जाते हैं वो देख देख के शादाब लाला-ज़ार-ए-जिगर ग़मों के बीज मिरे दिल में बोए जाते हैं हवास यूरिश-ए-तहज़ीब-ए-नौ में गुम जो हुए हम अपने गौहर-ए-अक़दार खोए जाते हैं कहाँ से 'बर्क़' ने अंदाज़-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न के लिए ग़ज़ल में दर्द के जौहर समोए जाते हैं