है इश्क़ में नैरंगी-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा और करता हूँ अगर शुक्र तो समझे है गिला और रिंदों की नवा और है साक़ी की नवा और या-रब सर-ए-मय-ख़ाना कोई मस्त घटा और अफ़्साना-ए-ग़म इतना तो दिलचस्प नहीं था जब मैं ने किया ख़त्म तो ज़ालिम ने कहा और दिल हीला-ए-इंकार-ए-जुनूँ ढूँड रहा है हाँ मेरे लिए कुछ शिकन-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता और जब सब्र का यारा है तो फिर ग़म का मज़ा क्या ग़म ही मिरी क़िस्मत है तो ऐ मेरे ख़ुदा और मंज़िल है ज़रा दूर अभी कैफ़-ए-बला की ऐ रिंद-ए-ख़ुश-अंजाम कोई लग़्ज़िश-ए-पा और है कुछ तो सबब कश्मकश-ए-शौक़ का आख़िर तुम ने ही कहा और कि मैं ने ही सुना और दिल महवियत-ए-ग़म में हुआ सुब्ह-फ़रामोश ऐ शैख़-ए-हरम आज मुअज़्ज़िन की सदा और या-रब मिरी निय्यत की ख़बर तुझ को तो होगी मैं ये नहीं कहता कि फ़रिश्तों ने लिखा और क्या जाने कहाँ ख़त्म हो अश्कों की कहानी फिर उन के तबस्सुम से इक अफ़्साना छिड़ा और महरूम-ए-मोहब्बत इसे क्या समझेगा 'जौहर' गुलशन की हवा और है दामन की हवा और