है इसी में प्यार की आबरू वो जफ़ा करें मैं वफ़ा करूँ जो वफ़ा भी काम न आ सके तो वही कहें कि मैं क्या करूँ मुझे ग़म भी उन का अज़ीज़ है कि उन्हीं की दी हुई चीज़ है यही ग़म है अब मिरी ज़िंदगी इसे कैसे दिल से जुदा करूँ जो न बन सके मैं वो बात हूँ जो न ख़त्म हो मैं वो रात हूँ ये लिखा है मेरे नसीब में यूँही शम्अ' बन के जला करूँ न किसी के दिल की हूँ आरज़ू न किसी नज़र की हूँ जुस्तुजू मैं वो फूल हूँ जो उदास हूँ न बहार आए तो क्या करूँ