है किस क़दर हलाक-ए-फ़रेब-ए-वफ़ा-ए-गुल बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल आज़ादी-ए-नसीम मुबारक कि हर तरफ़ टूटे पड़े हैं हल्क़ा-ए-दाम-ए-हवा-ए-गुल जो था सो मौज-ए-रंग के धोके में मर गया ऐ वाए नाला-ए-लब-ए-ख़ूनीं-नवा-ए-गुल ख़ुश-हाल उस हरीफ़-ए-सियह-मस्त का कि जो रखता हो मिस्ल-ए-साया-ए-गुल सर-ब-पा-ए-गुल ईजाद करती है उसे तेरे लिए बहार मेरा रक़ीब है नफ़स-ए-इत्र-सा-ए-गुल शर्मिंदा रखते हैं मुझे बाद-ए-बहार से मीना-ए-बे-शराब ओ दिल-ए-बे-हवा-ए-गुल सतवत से तेरे जल्वा-ए-हुस्न-ए-ग़ुयूर की ख़ूँ है मिरी निगाह में रंग-ए-अदा-ए-गुल तेरे ही जल्वे का है ये धोका कि आज तक बे-इख़्तियार दौड़े है गुल दर-क़फ़ा-ए-गुल 'ग़ालिब' मुझे है उस से हम-आग़ोशी आरज़ू जिस का ख़याल है गुल-ए-जेब-ए-क़बा-ए-गुल दीवानगाँ का चारा फ़रोग़-ए-बहार है है शाख़-ए-गुल में पंजा-ए-ख़ूबाँ बजाए गुल मिज़्गाँ तलक रसाई-ए-लख़्त-ए-जिगर कहाँ ऐ वाए गर निगाह न हो आश्ना-ए-गुल