है कुछ अगर सलीक़ा है कुछ अगर क़रीना मरने की तरह मरना जीने की तरह जीना करता हूँ पार दरिया तूफ़ान की मदद से मेरी निगाह में है हर मौज इक सफ़ीना इस में भी रौशनी है उस में भी रौशनी थी मेरा भी है वो सीना मूसा का था जो सीना जिस सम्त सर झुकाऊँ गुलशन अरक़ अरक़ हो महके मिरी जबीं से हर फूल का पसीना परहेज़ किस लिए फिर जब राय है ये सब की जाएज़ है ऐ 'मुनव्वर' तुम को शराब पीना