है मस्लहत की असीर दुनिया मैं जानता हूँ करेगी किस दर पे जा के सज्दा मैं जानता हूँ हवा की जितनी नवाज़िशें हैं ये साज़िशें हैं चराग़ और आँधियों का रिश्ता मैं जानता हूँ मैं अपने अश्कों का छींटा दे दूँ तो होश आए अभी है उस का ज़मीर ज़िंदा मैं जानता हूँ ये उस की तेग़ें ये उस के नेज़े ये उस के ख़ंजर पिघलने वाला है सारा लोहा मैं जानता हूँ कहाँ से बाल आईने में आए ये देखना है कहाँ से तक़्सीम अक्स होगा मैं जानता हूँ जो ज़िम्मेदारी मिली है जिस को निभा रहा है न कोई प्यासा न कोई दरिया मैं जानता हूँ किसी ज़माने की मा'रिफ़त क्या कलाम करना बदलता रहता है ये ज़माना मैं जानता हूँ समझ रहा हूँ वो कैसे बिछड़ेगा मुझ से 'तारिक़' कहाँ वो बदलेगा अपना रस्ता मैं जानता हूँ