है मिरे पेश-ए-नज़र चाँद सी सूरत तेरी गुल खिलाएगी किसी रोज़ मोहब्बत तेरी बार उल्फ़त का न उठता किसी आशिक़ से मगर रोज़ देती है इलाही इसे क़ुदरत तेरी चश्म-ए-मक़्तूल को देखा तो कहा क़ातिल ने जाएगी ता-बा-लहद साथ ये हसरत तेरी यास-ओ-अरमान-ओ-तमन्ना से न घबरा आशिक़ रह-ए-उल्फ़त में बढ़ाएँगी ये हिम्मत तेरी बरकतें किस के क़दम की हैं दिल-ए-ज़ार बता रोज़ बढ़ती ही चली जाती है वुसअ'त तेरी किस ने रोका है तुझे क्यूँ नहीं आती है क़ज़ा रोज़ उश्शाक़ किया करते हैं मिन्नत तेरी जा-ब-जा तेरे सबब से मैं रुका जाता हूँ आज दामन में किए देता हूँ फ़ुर्सत तेरी शाक़ है तेरी जुदाई दिल-ए-ग़म-गीं मुझ को ले चली सू-ए-बयाबाँ मुझे वहशत तेरी किब्र-ओ-नख़वत है ये किस चीज़ पे बतला वो मुझे ख़ाक है तेरी बिना क्या है हक़ीक़त तेरी सैकड़ों जुर्म पे भी रिज़्क़ मुझे देता है ये इनायत ये मोहब्बत ये मुरव्वत तेरी हाए अफ़्सोस 'जमीला' ये हुआ हाल तिरा अब तो देखी नहीं जाती है मुसीबत तेरी