है निगाहों में कोह-ए-तूर मियाँ मैं नहीं हूँ ख़ुदा से दूर मियाँ वो भी तक़रीर कर रहे हैं जिन्हें बोलने का नहीं शुऊ'र मियाँ ले न डूबे तिरी इबादत को ज़ोहद-ओ-तक़्वा का ये ग़ुरूर मियाँ मेरे मुँह में नहीं ज़बाँ ऐसी बोलती जो है जी-हुज़ूर मियाँ रह के दिल्ली में भी ये लगता है अब भी दिल्ली बहुत है दूर मियाँ एक मक़्तल थी महफ़िल-ए-याराँ हम ही ज़ुल्मत को समझे नूर मियाँ ख़ूब हैं सज्दा-रेज़ियाँ तेरी नफ़्स पर भी तो हो उबूर मियाँ