है नूर-ए-ख़ुदा भी यहाँ इरफ़ान-ए-ख़ुदा भी ये ज़ात कि है वादी-ए-सीना भी हिरा भी उस बन में किया करती है तप मेरी अना भी इस शहर में है कार-गह-ए-अर्ज़-ओ-समा भी करता हूँ तवाफ़ अपना तो मिलती है नई राह क़िबला भी है ये ज़ात मिरा क़िबला-नुमा भी ख़ुद-आगही ओ ख़ुद-निगही का है ये इनआ'म और जुर्म-ए-शनासाई-ए-आलम की सज़ा भी होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा सर-ए-एहसास जो देखती रहती है मिरी आँख दिखा भी करती है कमर-बस्ता सफ़र पर भी यही ज़ात जब दूर निकल जाता हूँ देती है सदा भी ज़र्रे में है कौनैन तो कौनैन में ज़र्रा कुछ है तुझे आवारा-ए-अफ़्लाक पता भी