है शोर साहिलों पर सैलाब आ रहा है आँखों को ग़र्क़ करने फिर ख़्वाब आ रहा है बस एक जिस्म दे कर रुख़्सत किया था उस ने और ये कहा था बाक़ी अस्बाब आ रहा है ख़ाक-ए-विसाल क्या क्या सूरत बदल रही है सूरज गुज़र चुका है महताब आ रहा है पानी के आइने में क्या आँख पड़ गई है दरिया में कैसा कैसा गिर्दाब आ रहा है आँखों की प्यालियों में बारिश मची हुई है सहरा में कोई मंज़र शादाब आ रहा है