है तक़ाज़ा-ए-जुनूँ सिलसिला-वार मिले ग़म की ज़ंजीर मिले दर्द की झंकार मिले तेशा-ए-नूर लिए सुब्ह का पैग़ाम लिए कोई बेदार मिले कोई तो होश्यार मिले दश्त-ए-वहशत की क़सम आबला-पाई की क़सम राह में जब न कोई साया-ए-दीवार मिले हम-सफ़र हम ने जहाँ नक़्श-ए-तमन्ना पाया हम रह-ए-ज़ीस्त के इस मोड़ पे बेकार मिले उन के चेहरों पे थे इख़्लास-ओ-मोहब्बत के नुक़ूश दिल में झाँका तो मिरे यार ही अग़्यार मिले