है टोंक अर्ज़-ए-पाक वहीं से उठेंगे हम उट्ठी जहाँ से ख़ाक वहीं से उठेंगे हम दीवार-ए-मय-कदा के उधर सलसबील है फ़र्ज़ंदगान-ए-ताक वहीं से उठेंगे हम मुद्दत से बंद है जो दरीचा बहार का ऐ कुंज-ए-ना-तपाक वहीं से उठेंगे हम पैराहन-ए-फ़लक पे जहाँ ख़त्त-ए-नूर है दामन है वाँ से चाक वहीं से उठेंगे हम हम ने वहीं पे चाँद को देखा है मुल्तफ़ित वो घर है ताबनाक वहीं से उठेंगे हम इस ख़ाक ही ने ख़ाक को पाला है उम्र भर पाया जहाँ से काक वहीं से उठेंगे हम 'अरशद' हम अपने शहर से आ तो गए मगर अपनी वहीं है धाक वहीं से उठेंगे हम