हैं दम के साथ इशरत ओ उसरत हज़ार-हा वाबस्ता एक तार-ए-नफ़स से हैं तार-हा कुछ सैद-ज़ख़्म-ख़ुर्दा-ए-जानाँ हमीं नहीं हर सैद-गह में उस की हैं बिस्मिल शिकार-हा आया वो जब तो हम न रहे आप में ग़रज़ देखा इसी तरह से उसे हम ने बार-हा उस गुल के चाक-ए-जेब की हसरत से बाग़ में हर सुब्ह चाक होती हैं जेब-ओ-कनार-हा उस सोज़न-ए-मिज़ा के तसव्वुर में शाना-साँ टूटे हैं एक ख़ल्क़ के पहलू में ख़ार-हा किस किस की देखिए चमन-ए-सनअ में बहार अपनी फ़क़त दो चश्म हैं और याँ बहार-हा थे कल ये ख़त्त-ए-आरिज़-ए-ख़ूबान-ए-सब्ज़ा-रंग कहते हैं आज ख़ल्क़ जिन्हें सब्ज़ा-ज़ार-हा थे कल ये शाहिदान-ए-सही सर्व-ओ-सीम-तन शाहिद हैं आज मर्ग के जिन के मज़ार-हा सब को 'नज़ीर' सोना है एक दिन ब-ज़ेर-ए-ख़ाक संग-ए-मज़ार उस के हैं आईना-दार-हा