हैं लज़्ज़त-ए-हयात तो कुछ तल्ख़ियाँ भी हैं हँसने के साथ साथ यहाँ सिसकियाँ भी हैं आँखों के रास्ते से निकलते हैं रंज-ओ-ग़म अच्छा है इस मकान में कुछ खिड़कियाँ भी हैं कहते हैं लोग तुझ को गुल-ए-बद-नसीब भी सुनती हूँ जुस्तुजू में तेरी तितलियाँ भी हैं तूफ़ान भी शबाब पे आने लगा इधर बेताब डूबने को इधर कश्तियाँ भी हैं छेड़ा न कीजिए मुझे मैं ऐसी शम्अ' हूँ दामन बचा के जिस से चलें आँधियाँ भी हैं आतिश-फ़िशाँ से दूर रहा कर ज़रा 'सुमन' सूरज के पास देख कहीं बस्तियाँ भी हैं